पाठ्य संरचना नीति (पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धांत):

क) बाल केन्द्रितता के सिद्धांत (बालकेन्द्रता का सिद्धांत) आधुनिक शिक्षा को बाल केन्द्रित शिक्षा कहा जाता है। इसलिए पाठ्यक्रम की शुरुआत करते समय, वर्तमान बच्चों की जरूरतों और घटनाओं को देखें। बच्चों को विभिन्न विषयों की सिफारिश करने के बजाय सार्थक अनुभव प्रदान किया जाना चाहिए।

बी) सह-संबंध के सिद्धांत (सहसंबंध का सिद्धांत): विभिन्न स्कूल विषयों को पूरी तरह से अलग से नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। पाठ्यक्रम कार्यक्रमों के बीच समन्वय और एकजुटता स्थापित करके छात्रों को पूर्ण यथार्थवादी अनुभव प्रदान किया जाना चाहिए।

c) सामाजिक केंद्रित नीति (समुदाय केन्द्रितता का सिद्धांत): वर्तमान में एक बच्चा भविष्य के समाज का एक जिम्मेदार नागरिक है। इसलिए शिक्षा को बच्चों को एक समाज, सफल बनाना चाहिए।

घ) लचीलेपन का सिद्धांत (लचीलेपन का सिद्धांत): पाठ्यक्रम लचीला और गतिशील होना चाहिए। समय बदलने के साथ पाठ्यक्रम भी बदलना चाहिए।

ई) उपयोगिता नीति (उपयोगिता का सिद्धांत): पाठ्यक्रम को फिट और उपयोगी बनाने के लिए कार्य अनुभव, तकनीकी और परिपत्र विषयों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
च) सेवानिवृत्ति की तैयारी की नीति (अवकाश के लिए प्रशिक्षण का सिद्धांत): पाठ्यक्रम इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए कि छात्र अपने सेवानिवृत्ति के समय का सही उपयोग कर सकें। इसलिए, पाठ्यक्रम में सह-पाठ्यचर्या कार्यक्रमों का प्रावधान होना चाहिए।

(सी) विषयों के समावेश का विस्तार करने की नीति (व्यापकता का सिद्धांत): पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों को शामिल किया जाएगा ताकि यह व्यक्ति के साथ-साथ समाज की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा कर सके और आवश्यकताओं के अनुसार विषय का चयन कर सके।

छ) रचनात्मक नीति (रचनात्मक सिद्धांत): जिन चीजों के बारे में छात्र रचनात्मक प्रतिभा को ठीक से विकसित कर सकते हैं वे दर्दनाक हैं।

पाठ्यक्रम शामिल किया जाना चाहिए। यह प्रतिभा विकास बच्चों को समय चाहिएअपने स्वयं के पर्यावरण में सुधार के अधीन

ऐसा करने के लिए इसे उपयुक्त बनाएं।