लक्ष्य शिक्षा और दर्शन के बीच संबंध

शिक्षा और दर्शन का घनिष्ठ संबंध है।

दर्शन का शिक्षा से घनिष्ठ सम्बन्ध है। ‘दर्शन’ का अर्थ आमतौर पर आंखों से देखा जाना होता है। हालांकि भारतीय संस्कृति के संदर्भ में दर्शन का ‘दर्शन’ शब्द केवल नेत्रों से ही नहीं है, यह सिद्धांत के दर्शन अर्थात् ज्ञान की दृष्टि से संसार के वास्तविक स्वरूप को भी दर्शाता है। ‘दर्शन’ का अर्थ है ‘सत्य का बोध’।शिक्षा के हर पहलू पर दर्शन का प्रभाव आज स्पष्ट है। प्लेटो का मत था कि जो ज्ञान से मोहित है, जो जिज्ञासु है और जो ज्ञान से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है, वह दार्शनिक है। जीवन दर्शन दुनिया के हर दार्शनिक से अलग है। वे जीवन को एक अलग नजरिए से देखते हैं। तो उनका दर्शन। इसलिए हम भिन्न-भिन्न दार्शनिकों के बीच भिन्न-भिन्न सिद्धांत देखते हैं।

चलो इसे हासिल करते है। उदाहरण के लिए प्लेटो के ‘आदर्शवाद’, अरस्तू, स्पेंसर, रुचो आदि का उल्लेख सुकरात, केंट, हेगल आदि दार्शनिकों के ‘प्रकृतिवाद’, ‘भाववाद’ के रूप में किया जा सकता है। इन सभी दार्शनिक विचारों ने शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

दर्शन किसी देश की शिक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को निर्धारित करता है। इसलिए, जब प्रत्येक देश शिक्षा के लक्ष्य पर चर्चा करता है, तो विविधता देखी जाती है। देश की शिक्षा प्रणाली के लक्ष्यों पर चर्चा करने से उस दर्शन का उदाहरण मिलता है जिसमें उसके लोग विश्वास करते हैं।