प्रतिशोध
Lesson 11
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो:
(i) मित्रता का निर्वाह कैसे होता है?
उत्तर: मित्रता का निर्वाह समानता और निरहंकारिता के सहारे होता है।
(ii) दो ब्रह्मचारी कौन-कौन हैं?
उत्तर: एक पांचाल राज्य का होनहार राजकुमार द्रुपद और दूसरा भिक्षाजीवी ब्राह्मण पुत्र है।
(iii) गुरुदेव ने अपने शिष्यों को कौन-सा सूत्रोपदेश दिया?
उत्तर: गुरुदेव ने अपने शिष्य को ‘सत्यं वद’, धर्मं चर’ वाला सूत्रोपदेश दिया।
(iv) अश्वत्थामा कौन था?
उत्तर: अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था।
(v) द्रोण एक गाय के लिए किसके पास गए थे?
उत्तर: द्रोण एक गाय के लिए अपने बाल्यकाल के मित्र राजा द्रुपद के पास गए थे।
(vi) किससे मिलने हेतु द्रोण हस्तिनापुर चले गये?
उत्तर: अपनी बहन कृपी से मिलने के लिए द्रोण हस्तिनापुर चले गए।
(vii) हस्तिनापुर में द्रोणाचार्य किससे मिले थे?
उत्तर: हस्तिनापुर में द्रोणाचार्य पितामह भीष्म से मिले थे।
(viii) एकदिन बालक अश्वत्थामा को मांँ ने दूध के नाम पर क्या पिलाकर बहलाया था?
उत्तर: एक दिन दूध के नाम पर अश्वत्थामा को माँ ने चावल का घोल पिलाकर बहलाया था।
(ix) द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में शिष्यों से क्या मांग की?
उत्तर: द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में शिष्यों से पांचाल नरेश अहंकारी द्रुपद को बंदी बनाकर सामने लाने की मांँग की।
उत्तर दो:
(i) शिक्षा समापन समारोह के अवसर पर गुरु ने अपने शिष्यों से क्या कहा था?
उत्तर: शिक्षा समापन समारोह के अवसर पर गुरु ने अपने शिष्यों से कहा कि ‘सत्यं वद, धर्म चर’ और ईश्वर में आस्था रखते हुए लोकहित में संलग्न रहना ही सभ्यजन का कर्तव्य है।
(ii) द्रुपद और द्रोणाचार्य कौन थे?
उत्तर: द्रुपद पांचाल राज्य का राजा था। जो वैभव की चकाचौंध में अहंकारी बन चुका था। दूसरी ओर द्रोणाचार्य एक भिक्षाजीवी ब्राह्मण पुत्र था, जो विद्या का अंकित संसाधन और सरस्वती का पुत्र था। जिसने धनुर्विद्या में कौशल प्राप्त किया था।
(iii) किस घटना को देखने पर द्रोणाचार्य के धैर्य का बांँध टूट गया?
उत्तर: द्रोण इतने लाचार थे कि एक दिन जब दूध के नाम पर चावल का घोल बनाकर मांँ रोते हुए नन्हें अश्वत्थामा को बहला रही थी उस दिन द्रोण के धैर्य का बाँध टूट गया।
(iv) राज सभा में राजा द्रुपद से एक गाय की मांँग करने पर द्रोण को क्या उत्तर मिला?
उत्तर: राज सभा में राजा द्रुपद से एक गाय की मांँग करने पर द्रुपद भड़क उठे और अहंकार की भावना से उत्तर देते हुए कहा कि “क्या तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं की मित्रता समान स्तर के व्यक्तियों में ही होती है। एक राजा की रंक के साथ कैसी मैत्री।”
(v) बंदी द्रुपद से द्रोण ने क्या कहा?
उत्तर: द्रुपद को बंदी बनाने का उद्देश्य उसके अहंकार को तोड़ना था। जब बंदी बनाकर द्रुपद को लाया गया तब द्रोण ने कहां की “द्रोण याद है न तुम्हें, एक दिन तुमने कहा था- मित्रता बराबर वालों में ही होती है। आज तुम्हारे पूरे राज्य पर मेरा अधिकार है। अपने राज्य का आधार भाग मैं तुम्हें दे रहा हूंँ। इस आधे भाग से मेरे समान स्थान पाकर तुम मेरी मित्रता के योग्य बन सकोगे।”
(vi) ‘पारखी नेत्र ने देख लिया’ का मतलब क्या है? वे पारखी नेत्र किसके हैं?
उत्तर: पारखी नेत्र का मतलब है, किसी कार्य को अच्छे से परखने की क्षमता। यानी ऐसे नेत्र जो कार्य को देखते ही उसके गुण एवं क्षमताओं को परख लेता है। ठीक इसी प्रकार पितामह भीष्म के पारखी नेत्रों ने द्रोण के अंदर छुपे गुण को पहचान लिया था। जब द्रोण ने धनुर्विद्या के कौशल से बालकों की गेंद कुएं से बाहर निकाली थी।
किसने, किससे कहा:
(i) “पांचाल नरेश अहंकारी द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे सामने लाओ, यही मेरे लिए तुम्हारी गुरु दक्षिणा होगी।”
उत्तर: यह वाक्य गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों से की थी।
(ii) “देव, हमारी गेंद उस कुएंँ में गिर गई। अब हम क्या करें?”
उत्तर: गेंद खेल रहे हस्तिनापुर के राजकुमारों ने द्रोणाचार्य से यह बात कही।
(iii) “सावधान द्रोण!क्या तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं की मित्रता समान स्तर के व्यक्तियों में ही होती है। एक राजा की रंक के साथ कैसी मैत्री।”
उत्तर: यह वाक्य पांचाल नरेश द्रुपद ने द्रोण से कही थी।
4.’क’ अंश के साथ ‘ख’ अंश को मिलाओ:
उत्तर:
‘क’ ‘ख’
द्रोणाचार्य = कौरव और पांडवों के गुरु
द्रुपद = पांचाल राज्य का राजा
भीष्म = कौरव-पांडवों के पितामह
अश्वत्थामा = द्रोणाचार्य का पुत्र
अर्जुन = तृतीय पांडव
आशय स्पष्ट करो:
(i) एक वैभव तथा ऐश्वर्य का स्वामी और दूसरा विद्या का अकिंचन साधक।
उत्तर: यहांँ दो अलग अलग व्यक्तित्व के बारे में बताया गया है। एक व्यक्ति जिसके पास धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं है और शारीरिक रूप से भी सुंदर है। तो दूसरी और एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास न तो धन संपत्ति है और न ही रूप, लेकिन उसके पास ज्ञान का भंडार। जो हमेशा विद्या के पीछे भागता है। फिर भी दोनों में गहरी मित्रता थी। क्योंकि दोनों एक ही आश्रम में विद्यार्थी के रूप में शिक्षा हासिल कर रहे थे। उस आश्रम में सभी समान थे, सभी में भाईचारा था। अर्थात जो भी आश्रम में विद्यार्थी के रूप में आते हैं वे मित्रता में इतने मग्न हो जाते हैं कि अपने अस्तित्व को ही भुला देते हैं।
(ii) ईश्वर में आस्था रखते हुए लोक हित में संलग्न रहना ही सभ्यजन का कर्तव्य है।
उत्तर: हम मनुष्य को मनुष्य के हित के लिए काम करना चाहिए। सभ्यजन वही कहलाता है जो ईश्वर में आस्था रखते हुए मनुष्य के सुख दुख में अपना हाथ बटाता है। अगर हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं तो हमें मनुष्यता कहलाने का कोई हक नहीं है। यह समाज तभी आगे बढ़ पाएगा जब हम एक दूसरे का सहारा बनेंगे।
भाषा-अध्ययन:
पाठ से चुकर इन के विपरीतार्थक शब्द लिखो:
उत्तर:
समानता – असमानता
शांति – अशांति
मूर्ख – विशारद
अयोग्य – योग्य
दुर्भाग्य – सौभाग्य
दास – स्वामी
शत्रु – मित्र
समर्थ – असमर्थ
अनुपस्थित – उपस्थित
राजा – रंक