Chapter 5
मानव शांति
- प्रस्तुत कविता किस काव्य ग्रंथ से ली गयी है?
उत्तर: प्रस्तुत कविता दिनकर जी की ‘कुरुक्षेत्र’ नामक काव्य ग्रंथ से ली गयी है।
- युधिष्ठिर कौन थे?
उत्तर: युधिष्ठिर ज्येष्ठ पांडव थे। युधिष्ठिर धर्मराज (यमराज) की संतान थे, क्योंकि दुर्वासा ऋषि के द्वारा दिए गए मंत्र से जब कुंती ने यमराज का आह्वान किया, तब उन्हें युधिष्ठिर की प्राप्ति हुई।
- मानवता की राह रोककर कौन खड़ा है?
उत्तर: प्रत्येक मनुष्य मुक्त होकर इस संसार में अपना विकास करना चाहता है, लेकिन मानवता के इस विकास में अनेक विध्न बाधाएँ पर्वत की तरह राह रोककर खड़ा हैं।
4.व्यैकक्तिक भोगवाद का समाज पर कैसा प्रभाव पड़ा है?
उत्तर: वैयक्तिक भोगवाद का समाज पर दुष्प्रभाव पड़ा है। इससे समाज में विष की धारा फुट पड़ा है।इस विषय में पड़कर सारा समाज तड़प रहा है। दिनकर जी के अनुसार इससे सुख-शांति नष्ट हो गयी है और चारों और हाहाकार मच रहा है।लोग अपने व्यैयक्तिक सुखों के लिए संचय कर रहे हैं, उन्हें समाज के अन्य लोगों के सुख दुख की कोई चिंता नहीं है।यही कारण है समाज में युद्ध, संघर्ष एवं अशांति का बोलबाला है।
- ‘मानव शांति’ कविता का भावार्थ प्रस्तुत कीजिए?
उत्तर: ‘मानव शांति’कविता ‘दिनकर’ जी द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ नामक काव्य ग्रंथ से ली गयी है।यहाँ धर्मराज युधिष्ठिर के माध्यम से दिनकरजी जीवन बोधपरक अनेक बातों पर अपनी दृष्टि डाल रहे हैं। इस कविता में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को यह बता रहे हैं कि पृथ्वी पर शांति स्थापना के लिए क्या आवश्यक है। युधिष्ठिर कहते हैं कि यह पृथ्वी किसी की क्रीत दासी अर्थात खरीदी हुई सेविका नहीं है। कोई इसका मालिक कहलाने का अधिकारी नहीं है। वहां पर जन्म लेने वाले सभी निवासी एक समान है।
कोई भी व्यक्ति को यहांँ रहने का अधिकार है, पृथ्वी से प्राप्त धन-धान्य का उपभोग तथा अपनी प्रयोजन के सभी चीजों की प्राप्ति करने का समान अधिकार है। हर व्यक्ति स्वच्छंद रहकर अपना विकास करना चाहता है। तथा जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पाना चाहता है, परंतु इसमें अनेक प्रकार की विध्न-बाधाएँ आकर उपस्थित हो गई हैं।मानवता के विकास में पर्वत जैसे अनेकों बाधाएंँ आ खड़े हुए हैं। जब तक प्रत्येक मानव को न्याय का सुख एवं अधिकार प्राप्त नहीं होते, तब तक पृथ्वी पर शांति नहीं मिल सकती। बसंती संघर्ष कंप्यूटर का मूल कारण सामाजिक विषमता है।
एक समय था जब लोग सम्मिलित परिवार में रहते थे। वहांँ अपने सुख कि नहीं, अपितु समग्र परिवार के सुख का ध्यान रखा जाता था। कोई किसी के हिस्से का सुख नहीं चुराता था,किंतु कालांतर में यह व्यवस्था समाप्त हो गई और लोग अपने व्यक्तिक सुख पर अधिक ध्यान देने लगे। इससे लोगों के मन में आशंकाएँ एवं भय व्याप्त होने लगी। वैयक्तिक ठोक बाद में शरबत अशांति एवं संघर्ष का बीज बो दिया। समग्र समाज उसमें पड़कर तड़प रहा है। भीष्म पितामह कहते हैं कि हे धर्मराज! मेरा दृढ़ विचार है कि पृथ्वी पर परमात्मा के दिए सुखों की कमी नहीं है, किंतु उनके बँटवारे में विषमता है। यहाँ सुख अधिक है उन्हें भोगने वाले आदमियों की कमी है, किंतु कुछ लोगों ने सुखो पर अधिकार कर दूसरे का भाग हड़प लिया है–यही अशांति, असंतोष, संघर्ष एवं युद्ध का कारण बनता है। यदि यह विषमता समाप्त हो जाए तो निश्चय ही पृथ्वी पर सुख, शांति छा जाएगी।
- व्याख्या कीजिए………
(क)”धर्मराज, यूं ही किसी की
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इसके सभी निवासी।”
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ नामक काव्य ग्रंथ के अंतर्गत हमारी पाठ्य- पुस्तक ‘हिंदी साहित्य संकलन’ के ‘मानव शांति’ नामक कविता से लिया गया है।
प्रसंग: महाभारत युद्ध में हुए भीषण जनसंहार से व्यथित युधिष्ठिर अपने मन में उमड़ते प्रश्नों का समाधान करने के लिए युद्ध भूमि में शरशैया पर घायल पड़े भीष्म पितामह के पास जा पहुँचे और उनसे अपने मन की व्यथा का वर्णन किया। भीष्म पितामह ने उन्हें समझाते हुए जो कुछ कहा उसी का वर्णन इन पंक्तियों में कवि ने किया है।
व्याख्या: भीष्म पितामह कहते है कि– हे धर्मराज युधिष्ठिर, क्यों पृथ्वी किसी की क्रीत नहीं है। अर्थात यह पृथ्वी किसी की खरीदी हुई सेविका नहीं है, किसी की गुलाम नहीं है। वे कहते हैं कि इस पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी व्यक्ति जन्म से ही और परस्पर समान है, उनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं है। अर्थात इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले सभी का इस पर समान अधिकार है।
विशेष: इसमें कवि इस बात पर बल देते हैं कि समाज में सब लोगों के लिए अधिकार बराबर है, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति सबके लिए होनी चाहिए। समाज में तभी समानता स्थापित हो सकती है।
(ख)”जब तक मनुज-मनुज का यह
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संघर्ष नहीं कम होगा।”
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘कुरुक्षेत्र’ से ली गयी है। इन पंक्तियों को हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी साहित्य संकलन’ के पद्य खंड में संकलित किया गया है।
प्रसंग: भीष्म पितामह युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि इस पृथ्वी पर शांति की स्थापना तभी हो सकती है, जब सभी मनुष्य सुख को बराबरी से भोगेंगे।
व्याख्या: भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि–हे युधिष्ठिर! जब तक इस संसार में रहने वाले सभी मनुष्यों में सुख का बराबर बँटवारा नहीं होता, तब तक शांति स्थापना नहीं हो सकती।यदि एक व्यक्ति को सुख के असीम साधन उपलब्ध हो और दूसरे व्यक्ति की जीवन में मूलभूत आवश्यकताएँ की पूर्ति नहीं होती, तब शांति की स्थापना कैसे हो सकेगी। संसार में अशांति, कोलाहल और संघर्ष का मूल कारण यह विषमता है। यदि विषमता समाप्त हो जाए और समता स्थापित हो जाए तो अशांति, कोलाहल एवं संघर्ष को सदा के लिए समाप्त किया जा सकता है।
विशेष : शांति के लिए पहली आवश्यकता है समता, समानता की। इसमें कवि की प्रगतिवादी भाव व्यक्त हुए हैं।